tag:blogger.com,1999:blog-65260756781629221052024-03-19T05:55:14.539-07:00ॠतु बसंतॠतु गोयल की मानवीय संवेदनाओं से जुडे ब्लाग में आप का स्वागत हैUnknownnoreply@blogger.comBlogger115125tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-45306048378945159362023-10-15T09:11:00.000-07:002023-10-15T09:12:00.507-07:00मेरे रामसिया जी के संग राम,ले रहे हैं सब नाम<div>नाम बिन झूठी सब कलियुगी माया है</div><div>नाम एक सत नाम पूरन करे जो काम</div><div>तर गया जिसने भी राम धन पाया है</div><div>मुख में हो गर नाम दिल में भी रहे राम</div><div>भक्त हनुमान ने ज्यों राम को बसाया है</div><div>और चाहे जितनी भी भव्य रामलीला करो</div><div>तुलसी से सीखो कैसे राम जी को ध्याया है</div><div><br></div><div><br></div><div>राम जी विचार है आचार ,व्यवहार है जी</div><div>पूजा व आराधना से राम नहीं मिलते</div><div>मंदिर बनाएं चाहे संपदा लुटाएं हम</div><div>भाव बिन राम जी ना कभी भी पिघलते</div><div>दीनों के दयालु राम कितने कृपालु राम</div><div>नाम भर लिखने से पत्थर हैं तरते</div><div>शबरी के झूठे बेरों में भी मीठा भाव चखा</div><div>यूं ही कोई राम भगवान नहीं बनते</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-54228371125425847402022-07-20T03:01:00.001-07:002022-07-20T03:01:09.552-07:00कोई है जो बोलता है<div><br></div><div><br></div><div> मौन</div><div><br></div><div>ढेरों प्रश्न-उत्तर</div><div>अनुत्तरित कतार में खड़े थे</div><div>अनगिन शब्द व वाक्य</div><div>अधरों के द्वार पर अड़े थे</div><div>मन में भावों का झंझावात था</div><div>तन की हरकतों में चक्रवात था</div><div>सौरमण्डल में अक्षरों के ग्रह-उपग्रह</div><div>तूफ़ानीय गति से घूम रहे थे</div><div>हर पल खामोशियों के जंगल उग रहे थे</div><div>भाषाओं के संसार में </div><div>यकायक गूंगे हो गए थे सब के सब</div><div>विलक्षण थी वो दुनिया</div><div>जहाँ गीत-संगीत,अभिव्यक्ति खामोश थे </div><div>पर हाँ</div><div>कोई था जो बोल रहा था</div><div>भीतर-बाहर,जन्म-जन्मांतर की</div><div>परतें खोल रहा था</div><div>वो गुनगुना रहा था</div><div>भीतर ही भीतर कुछ गा रहा था</div><div>तटस्थ था,खुशहाल था</div><div>अजीब था,बेमिसाल था</div><div>जिसे हम अब से पहले नहीं जानते थे</div><div>साधना के पहले कहाँ पहचानते थे</div><div>पर अब जाना</div><div>वो कौन था</div><div>दरअसल</div><div>वो मौन था</div><div>वो मौन था</div><div>वो मौन था</div><div> ऋतु गोयल</div>Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-34633376659931598402022-06-27T05:28:00.001-07:002022-06-27T05:28:39.413-07:00मौनढेरों प्रश्न-उत्तर<div>अनुत्तरित कतार में खड़े थे</div><div>अनगिन शब्द व वाक्य</div><div>अधरों के द्वार पर अड़े थे</div><div>मन में भावों का झंझावात था</div><div>तन की हरकतों में चक्रवात था</div><div>सौरमण्डल में अक्षरों के ग्रह-उपग्रह</div><div>तूफ़ानीय गति से घूम रहे थे</div><div>हर पल खामोशियों के जंगल उग रहे थे</div><div>भाषाओं के संसार में </div><div>यकायक गूंगे हो गए थे सब के सब</div><div>विलक्षण थी वो दुनिया</div><div>जहाँ गीत-संगीत,अभिव्यक्ति खामोश थे </div><div>पर हाँ</div><div>कोई था जो बोल रहा था</div><div>भीतर-बाहर,जन्म-जन्मांतर की</div><div>परतें खोल रहा था</div><div>वो गुनगुना रहा था</div><div>भीतर ही भीतर कुछ गा रहा था</div><div>तटस्थ था,खुशहाल था</div><div>अजीब था,बेमिसाल था</div><div>जिसे हम अब से पहले नहीं जानते थे</div><div>साधना के पहले कहाँ पहचानते थे</div><div>पर अब जाना</div><div>वो कौन था</div><div>दरअसल</div><div>वो मौन था</div><div>वो मौन था</div><div>वो मौन था</div><div> ऋतु गोयल</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-54002113608133375552022-01-05T05:27:00.001-08:002022-01-05T05:27:35.998-08:00कविता(मन छूट रहा है)धुंधला जाती है चलते-चलते जब भी मंज़िल।<div>तब अपने नैनों को जुगनू बना लेती हूं।</div><div>घना अंधेरा छा जाता है जब भी बाहर।</div><div>तब भीतर-भीतर एक दीया जला लेती हूं।</div><div><br></div><div>सौ-सौ दियें जलाऊं बेशक बाहर फिर भी।</div><div>ज्ञान बिना अज्ञान अंधेरा बो जाता है।</div><div>इस खातिर अंतर को मैं पहले रौशन करती।</div><div>फिर सारा तम ही खुद ब खुद ही खो जाता है।</div><div><br></div><div>खुद का अता-पता न हमको फिर भी पागल।</div><div>मन ये ढूंढ रहा न जाने किसको जाने।</div><div>अपनी ही साँसों के सरगम को न गाया।</div><div>कोलाहल को गा-गा कर हम हुए दीवाने।</div><div><br></div><div>एकांत साध ले ऐसा मन पे वश न पाया।</div><div>खुद का साथ ही हमको हरदम ही उकताया।</div><div>भीड़-भाड़ में बेशक हो हम निपट अकेले।</div><div>फिर भी हमने मेले में ही मन बहलाया।</div><div><br></div><div>भूल रहे हम,सब के सब हैं यहां मुसाफिर।</div><div>और दुनिया है केवल एक मुसाफिर खाना।</div><div>जो आने के संग जाने की करे तैयारी।</div><div>वही सुखी है जिसने इस सच को पहचान।</div><div><br></div><div>मृगतृष्णा के पीछे भागूं भागूं कितना।</div><div>भाग-भाग कर मन ही पीछे छूट रहा है।</div><div>प्यास बुझेगी इस मरुभूमि में क्या मेरी।</div><div>मन-मृग ढूंढ-ढूंढ कस्तूरी टूट रहा है।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-3718127681057474282022-01-05T05:10:00.001-08:002022-01-05T05:12:36.609-08:00गीत(वो ही है दीवार)तारीख बदली,साल बदला फिर से अबकी बार।<div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।</div><div><br></div><div>नामों की लंबी सूची पर, उनमें अपने कौन।</div><div>वक्त की छलनी में छन-छन के, हो जाते सब मौन।</div><div>आख़िर में जो रह जाते हैं, वही पुराने यार।</div><div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।</div><div><br></div><div><br></div><div>कुछ छोटे,कुछ हुए पुराने कुछ कपड़े बेहाल।</div><div>कुछ बांटे पर फिर यादों में, कुछ रखें सम्भाल।</div><div>तन की उम्र तो बढ़ती जाएं,मन की वो ही धार।</div><div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।</div><div><br></div><div>इंस्टा,ट्वीटर,फेसबुक पर, मिलना और मिलाना।</div><div>सोशल मीडिया बना सभी का, अब तो ठौर-ठिकाना।</div><div>पर सम्भाल के रखें अब भी,वो पीले अख़बार।</div><div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।</div><div><br></div><div>होटल,पब और मॉल, सिनेमा जा-जा कर न थकते।</div><div>दुनिया भर की सैर करें सब, पल भर को न टिकते।</div><div>पर लॉक डाउन में घर के आगे, बाकि सब बेकार।</div><div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।</div><div><br></div><div>ऑन लाइन का आया जमाना,आर्डर दिन भर आते।</div><div>सब्जी-भाजी,कपड़े-लत्ते,एप्प हमें दिलवाते।</div><div>पर चाहत को सुकूँ मिले खुद, जाके ही बाज़ार।</div><div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।</div><div><br></div><div>नए-नए वादों में लिपटे, नए-नए विज्ञापन।</div><div>भोली-भाली क्या जाने,ढूंढे उनमें अपनापन।</div><div>ठगी-ठगी से हरदम रहती,हो जिसकी सरकार।</div><div>बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार।<br><div> </div><div> ऋतु गोयल</div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-60862970161302099262021-11-13T08:06:00.001-08:002022-01-05T05:11:49.423-08:00गीत (कोई दे न दे)<div>खुद ही खुद की खुद्दारी को मान दिया है।</div><div>हक अपना लेकर खुद को सम्मान दिया है।</div><div><br></div><div>मैं भारत की नारी, मैं कमजोर नहीं हूँ भारी हूँ।</div><div>मैं काली,दुर्गा,लक्ष्मी हूँ, मैं जननी महतारी हूँ।</div><div>मैंने ही तो सबको जीवन दान दिया है।१।</div><div><br></div><div><br></div><div>मैं चेन्नमा,दुर्गा भाभी, झाँसी की रानी मर्दानी।</div><div>मैं सरोजनी नायडू, मैं ही पन्ना धाय सी बलिदानी।</div><div>मैंने भी आज़ादी में बलिदान दिया है।२।</div><div><br></div><div><br></div><div>मैं अहिल्या,जीजा बाई हूँ, शबरी,मीरा सी हूँ जोगन।</div><div>मैं वैदेही, मैं वनवासिन,राधा रानी सा पावन मन।</div><div>मेरी खातिर हरि ने गीता ज्ञान दिया है।३।</div><div><br></div><div><br></div><div>मैंने ही भाषा सिखलाई,तुम गढ़ते मेरी परिभाषा।</div><div>मेरी गोदी में पलते हो,उल्टा पड़ता फिर क्यूँ पासा।</div><div>मैंने निर्मिति की, तुमने व्यवधान दिया है।</div><div><br></div><div><br></div><div>केश खुले रक्खे अपने जीती जब-जब भी जंग हुई।</div><div>दांव लगी जब-जब नारी, बस मानवता ही दंग हुई।</div><div>सीता-द्रौपदी सबने ही इम्तेहान दिया है।</div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-27550594634513004072021-04-07T06:49:00.001-07:002021-04-07T06:49:18.110-07:00मुक्तकमैं अपने अश्कों की स्याही से ही हालात लिखती हूँ।<div>हरेक पीड़ा ओ बैचेनी, हरेक जज़्बात लिखती हूँ।</div><div>मैं जो बोलूं वो तुम समझो सदा ये हो नहीं सकता।</div><div>मैं मन के पन्नों पर ही इसलिए हर बात लिखती हूँ।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-48491268833386366102021-04-07T06:44:00.001-07:002021-04-07T06:44:51.135-07:00मुक्तकवो कहता है कि मेरा है मगर, कुछ है जो खलता है।<div>मैं हंसती हूँ तो रोता है,मैं रोती हूँ तो हंसता है।</div><div>वो बातें भी बड़ी करता है, तालीमें भी अव्वल हैं।</div><div>मेरे दिल को न पढ़ पाया,मुझे वो अनपढ़ लगता है।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-37130196145257964992021-04-07T06:38:00.001-07:002021-04-07T06:38:54.652-07:00मुक्तकअभी तक जो सुना हमने, अधिक ही अनसुना होगा।<div>यक़ीनन हम सभी के जाने कितने-कितने किस्से हैं।</div><div>कि यूं तो दिख रहे हैं हम समूचे सब ही बाहर से।</div><div>मगर भीतर ही, भीतर जाने, कितने-कितने हिस्से हैं।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-35989061912667079112020-10-16T08:45:00.001-07:002020-10-16T08:45:19.873-07:00बापू महात्मा गांधी<div>तुमको चरखा,खादी और स्वदेशी गीत सदा भाए।</div><div>तुम सत्य,अहिंसा, सादगी के साधक बन आए।</div><div>साबरमती के संत कहाए आज़ादी भी दिलवाई</div><div>तुम ही राष्ट्रपिता,महात्मा औ' बापू कहलाए।</div><div><br></div><div><br></div><div>बापू तेरा हर इक बंदर नेकी हमको सिखलाए।</div><div>कभी न देखे बुरा, न बोले बुरा, बुरा ना सुन पाए।</div><div>नोटों पर तस्वीर तेरी ये राह सत्य की दिखलाए।</div><div>फिर भी जाने क्यों जन-जन का चंचल मन भटका जाए।</div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-606067991964705532020-10-02T00:21:00.001-07:002020-10-02T00:21:47.531-07:00मुक्तक स्वाभिमानहरगिज़ दया किसी की गंवार नहीं मुझे<div>खुद संवरी हूँ किसी ने सँवारा नहीं मुझे</div><div>जब भी मेरी कश्ती किसी तूफान में डूबी</div><div>उसके सिवा किसी ने उबारा नहीं मुझे</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-67691641698700559242020-10-02T00:16:00.001-07:002020-10-02T00:16:52.853-07:00मुक्तक देशभक्तिवो लोग क्या जिये जो बस, अपने लिए जिये<div>एक-एक सांस हो हमारी, देश के लिए</div><div>है घोर तिमिर चारों तरफ मेरे साथियों</div><div>जलना भी पड़ा तो जलेंगे बनके हम दिए</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-12297159153170484872020-10-01T10:19:00.001-07:002020-10-01T10:21:00.680-07:00मुक्तक बुजुर्गोंनिभाने की जिन्हें संस्कारों की आदत नहीं होती।<div>दिलों में जिनके हमदर्दी औ मोहब्बत नहीं होती।</div><div>बुजुर्गों के लबों पर जो न मुस्कानों को रख पाए।</div><div>कभी भी उनके घर में फिर कोई बरकत नहीं होती।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-9077932475161574882020-09-14T03:53:00.001-07:002020-10-01T10:21:41.171-07:00मुक्तक ऋतुमोहब्बत कि सभी रस्में सदा हंस कर निभाई हैं।<div><div>अंधेरे में जली हूँ दीप बन राहें दिखाई हैं।</div></div><div>मेरी आँखों में बसते हैं यहां सुख-दुख के हर मौसम।</div><div>ऋतु है नाम मेरा मुझमें सब ऋतुएं समाई हैं।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-49026247933327121022020-05-08T09:59:00.001-07:002020-10-01T10:22:25.276-07:00मुक्तक मांचारों धाम मिले छू कर,वो पावन मां के पांव है।<div>रोम-रोम यूं प्यार भरा है,मां शीतल सा गाँव है।</div><div>आंधी-तूफ़ा हों चाहे या धूप हमारे हिस्से की।</div><div>अपने हिस्से सब ले लेती,माँ ममता की छांव है।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-48988836928454691442020-01-10T21:11:00.001-08:002020-01-10T21:11:43.337-08:00मुक्तक प्रेमआईने का वो अब गरूर गया<div>साथ काजल के मेरा नूर गया</div><div>मैं भी अब खुद में कहां बाकि हूँ</div><div>जब से तू मुझसे बहुत दूर गया</div><div>तू भी अब मुझसे बहुत दूर गया</div><div><br></div><div>तू ही पूजा है तू इबादत है</div><div>तू ही तो इक मेरी अमानत है</div><div>मेरी आँखों से दूर मत जाना</div><div>हर कदम पे तेरी जरूरत है</div><div><br></div><div>ख्वाब बिन जैसे कोई नैन नहीं</div><div>चांद बिन जैसे कोई रैन नहीं</div><div>चाहे शिकवा हो या मोहब्बत हो</div><div>बिन तेरे मुझको कहीं चैन नहीं</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-79353312953233106942019-12-30T09:28:00.001-08:002019-12-30T09:28:42.695-08:00मुक्तक(प्रेम)भावों से भरी राधिका सी बावरी हूँ मैं<div>जो मिल न सकी उम्र भर ऐसी धुरी हूँ मैं</div><div>क्या दोष है कान्हा मेरे तुम मुझको बताना</div><div>अधरों पे क्यूँ न सज सकी एक बाँसुरी हूँ मैं</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-81284618228059422172019-12-30T09:24:00.001-08:002020-09-14T03:48:25.334-07:00मुक्तक(स्वाभिमान)मुझको न कोई मान न समान चाहिए<div>इंसा से अलग और न पहचान चाहिए</div><div>मेरी है तमन्ना कि मैं ऐसे काम कर चलूं</div><div>हर दिल में रह सकूँ यही वरदान चाहिए</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-28678961338068434202019-12-22T04:48:00.001-08:002019-12-22T04:48:37.431-08:00मुक्तक प्रेमभावों से भरी राधिका सी बावरी हूँ मैं।<div>जो मिल न सकी उम्र भर ऐसी धुरी हूँ मैं।</div><div>क्या दोष है कान्हा मेरे तुम मुझको बताना।</div><div>अधरों पे क्यूं न सज सकी एक बांसुरी हूँ मैं।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-73877518852061901792019-11-08T06:53:00.001-08:002019-11-08T06:53:49.879-08:00कविता बिटिया<div>बिटिया</div><div><br></div><div>हो जितनी चाहे रेखाएं, हाथ-हथेली पर।</div><div>बस एक भाग्य की रेखा ही, तकदीर बदलती है।</div><div>हो चाहे जितने बेटे बेशक, मां-बाबा के साथ।</div><div>पर इक बिटिया, घर-भर की तस्वीर बदलती है।</div><div><br></div><div>बिटिया अपनी माँ की सूनी, आँखें पढ़ती है</div><div>अंदाज़ा हालातों का, पल भर में करती है। </div><div>हर खामोशी पढ़ने वाली, बिटिया होती है।</div><div>सबके दुख में रोने वाली, बिटिया होती है।</div><div><br></div><div>वह उत्सव में बन रंगोली,खुद ही सजती है।</div><div>मिश्री जैसी बोली, जैसे वीणा बजती है।</div><div>बिटिया से ही ,रुनझुन-रुनझुन, आंगन होता है।</div><div>बिटिया हो तो, रिमझिम-रिमझिम, सावन होता है।</div><div><br></div><div>बिटिया से घर आँगन की सजधज मुस्काती है</div><div>बीटिया छू दे तो देहरी पावन हो जाती है</div><div>अहसासों से छूकर हर पीड़ा हर लेती है।</div><div>हर मुश्किल के दामन में,खुशियां भर देती है।</div><div><br></div><div>बिन बिटिया के माओं को, आराम नहीं मिलता।</div><div>बेटे ही हो घर में तो, विश्राम नहीं मिलता।</div><div>ये बिटिया ही है जो सबके, राज छिपाती है।</div><div>अपने सारे गुल्लक, दोनों हाथ लुटाती है।</div><div><br></div><div>बिटिया मां की अलमारी का, ऐसा गहना है।</div><div>जिसे अमानत बन कर रहना,सब कुछ सहना है।</div><div>बिटिया बटुएं और जेबों का एक हिसाब है।</div><div>जो छिपा कर रखती अपने सारे,ख्वाब है।</div><div><br></div><div>उसकी ख्वाहिश,सबकी खुशियां,कैसा रिश्ता है।</div><div>बिटिया सचमुच सब रिश्तों में, एक फरिश्ता है।</div><div><br></div><div>बिटिया ने पढ़-लिख के सब,रिकॉर्ड तोड़ दिए।</div><div>अंतरिक्ष तक जाके, सबसे रिश्ते जोड़ लिए।</div><div>बिटिया घर से संसद तक की रानी बन बैठीं।</div><div>बिटिया बेटों से ऊपर महारानी बन बैठीं। </div><div><br></div><div>बिटिया धरती- नभ के सारे,काम करती है।</div><div>बुद्धि बल से अपना रौशन, नाम करती है।</div><div>बिटिया लक्ष्मी,दुर्गा है, और काली है।</div><div>फूल नहीं केवल बिटिया,शक्तिशाली है।</div><div><br></div><div>बिटिया चंदन है, स्पंदन और अभिनन्दन है।</div><div>बिटिया से ही दुनिया है, इसका वंदन है।</div><div>उसकी ख्वाहिश,सबकी खुशियां, कैसा रिश्ता है।</div><div>बिटिया सचमुच रिश्तों में एक फरिश्ता है।</div><div><br></div><div>ऋतु गोयल</div><div>(कवयित्री)</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-9100817964010697192019-10-13T20:51:00.001-07:002019-11-14T08:38:09.686-08:00एक मामूली आदमी की फाइल<p dir="ltr">एक मामूली आदमी की फ़ाइल</p>
<p dir="ltr">हाँ मैं तलाश में हूँ<br>
पर कहाँ ढूँढू उसे.....</p>
<p dir="ltr">ये ऊंचे भवन<br>
लंबे गलियारें<br>
गलियारों में कमरें<br>
दरवाजों पर तख्तियां<br>
तख्तियों पर ओहदें</p>
<p dir="ltr">कितनी टेबलें<br>
कितनी फ़ाइलें<br>
फाइलों में पृष्ठ<br>
पृष्ठों में पत्र<br>
पत्रों में शब्द<br>
शब्दों में अक्षर<br>
अक्षर सुनहरे<br>
जिनमें लिखा है<br>
धैर्य..धैर्य और धैर्य...</p>
<p dir="ltr">जी हां जो एक कमरे से<br>
दूसरे कमरे से तीसरे<br>राज्य दर राज्य</p><p dir="ltr">शहर दर शहर</p><p dir="ltr">
भवन दर भवन<br><br>
होकर गुजरता है<br>
यह धैर्य कितना प्रबल होता है</p>
<p dir="ltr">इन्हीं फ़ाइलों में जन्मता,फ़ाइलों में मरता है<br>
पर कमबख्त ,किसी के हाथ नहीं आता है<br>
मैं कैसे ढूँढू इसे....</p>
<p dir="ltr">वास्को दि गामा ने भारत की खोज की<br>
पर आज खोई एक फ़ाइल तो ढूँढ के लाएं<br>
यहां कितनी ही कुंजियाँ कहीं दब कर खो गई हैं<br>
इनसे कहो इसे ढूंढ, फिर से इतिहास बनाएं</p>
<p dir="ltr">हमारी आदतें अपनी आदतों से मजबूर हो गई हैं<br>
आम आदमी के हाथों से दूर हो गई हैैं</p><p dir="ltr">जिनके हाथ लंबे हैं </p><p dir="ltr">उनको हर चीज़ हाथों हाथ मिलती हैं</p><p dir="ltr">और वे जिनके हाथ कुछ नहीं होता</p><p dir="ltr">वे हाथ-पाँव मार कर भी</p><p dir="ltr">हाथ मलते रह जाते हैं</p>
<p dir="ltr">देखो<br>
यह सफेद बाल कभी काले होते थे<br>
अब झुर्रियां तक बुढ़ाने लगी हैं<br>
ये चमचमाते जूते घर से रोज़ निकलते थे<br>
टाई, बेल्ट बांधे एक जेंटलमेन था वह<br>
पर फ़ाइल ढूंढते-ढूंढते<br>
बेतरतीब हो गया</p><p dir="ltr">कतारों में खड़ा, अजीब हो गया</p>
<p dir="ltr">तब तय हुआ एक सपना, <br>
उसके घर में<br>
बेटों के,बेटी के सबके<br>
सफर में</p>
<p dir="ltr">डॉक्टर,इंजीनियर,वैज्ञानिक सब<br>
अपनी-अपनी फ़ाइलें बंद कर गए<br>
कहीं कतारों में न टैलेंट मर जाये<br>
इस खातिर अपनों से ही दूर चले गए।</p>
<p dir="ltr">और यह ओल्ड जेंटलमैन<br>
फिर भी कतारों में खड़ा है<br>
पुरातन है इसलिए </p><p dir="ltr">सिद्धांतों पर अड़ा है</p>
<p dir="ltr">पेंशन, पी एफ,ग्रेच्यूटी<br>
न जाने कौन-कौन सी फ़ाइलें ढूंढ रहा है</p><p dir="ltr">और भी न जाने ऐसे कितने ही लोग</p><p dir="ltr">अपने ज़िंदा होने का सबूत लिए</p><p dir="ltr">कतारों में खड़े हैं</p><p dir="ltr">और कुछ तो सरकारी दफ़्तरों के</p><p dir="ltr">कालचक्र में ही औंधे मुंह पड़े हैं<br><br></p><p dir="ltr">भूलिये मत</p><p dir="ltr">आपकी,मेरी और हम सबकी</p><p dir="ltr">एक-एक फ़ाइल</p><p dir="ltr">एक ऐसे अफसर के हाथ में है</p><p dir="ltr">जो हमारे गुनाहों को कभी माफ नहीं करेगा</p><p dir="ltr">गर हमने बेगुनाहों को सज़ा दी</p><p dir="ltr">तो वो भी हमें जरूर दंडित करेगा।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"><br></p>
<p dir="ltr">जी हां<br>
मैं ढूंढना चाहती हूं उसकी सब फ़ाइलें<br>
बिना वक्त गवाएं<br>
कही सांसें न थम जाएं<br>
या फिर <br>
सर्वर डाउन न हो जाएं</p><p dir="ltr">आइयें हम सब ढूंढते हैं वो फ़ाइल</p><p dir="ltr">जिसमें देश का भविष्य लिखा है</p><p dir="ltr">और जो हर आम आदमी के पसीने में दिखता है</p>
<p dir="ltr"><br></p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-5347261546467457102019-07-26T00:15:00.001-07:002019-07-26T00:15:38.373-07:00कुछ मुक्तक कश्मीर पर<p dir="ltr">यह देश के विरुद्ध साफ एक जिहाद है।<br>
यह तीन सौ सत्तर स्वयं में एक विवाद है।<br>
नेता जी अलगाव-अलगाव गा रहे।<br>
यह देश द्रोह है औ'यही आतंकवाद है।</p>
<p dir="ltr">यूं बाँट न सकोगे इसे एक जान है।<br>
ये काश्मीर भारती का स्वाभिमान है।<br>
जन-जन की इस आवाज़ को फारुख जी सुनो।<br>
हारा है न हारेगा ये,हिन्दोस्तान है।</p>
<p dir="ltr">जो तुमको नहीं आता,अमन चैन से रहना।<br>
तो हमको भी कब आया किसी जुल्म को सहना।<br>
तुम चल रहे किस नक्शे-कदम है नहीं शरम।<br>
नक्शा ही गर मिटा दिया तो फिर नहीं कहना।</p>
<p dir="ltr">जिसने सही हो पीर वो तो मीर हो गया।<br>
चादर में हो न दाग़ तो कबीर हो गया।<br>
यूं तो हरेक प्रांत ही हमको अज़ीज है।<br>
पर जो दिल के है करीब वो कश्मीर हो गया/बेहद अजीज सबका कश्मीर हो गया।</p>
<p dir="ltr">माँ भारती का शीश है, कश्मीर हमारा।<br>
आधा नहीं थोड़ा नहीं, सारा का ही सारा।<br>
कटने नहीं देंगे इसे, झुकने नहीं देंगे।<br>
जन्नत से भी बढ़ कर है ये, प्राणों से भी प्यारा।</p>
<p dir="ltr">वो है ईमानदार बड़ा,वो उदार है।<br>
मोदी नहीं है नाम फ़क़त,एक विचार है।<br>
प्रहरी है मातृभूमि का वो चौकीदार है।<br>
जादू नमो-नमो का सभी पर सवार है।</p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-24784708405710120072019-07-25T23:47:00.001-07:002019-10-13T20:08:32.591-07:00मुक्तक<p dir="ltr">है मेहरबान मुझ पे रब कितना<br>
वो हुआ है किसी पे कब इतना<br>
जानता था कि हंस के सह लूँगी/मेरी हस्ती पे था यकीं <u>उसको</u><br>
दे दिया गम मुझे जहाँ जितना</p>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-83489535470265728652019-04-06T23:27:00.001-07:002019-10-13T20:26:29.715-07:00पहली बारिश<p dir="ltr">झोंकें, बूंदें,बारिश, छम -छम<br>
कितने नये नये से हैं<br>
जैसे मेरी, पहली -पहली बारिश हो<br>
महके मन की, बहकी -बहकी ख्वाहिश हो<br>
जैसे कोई नई- नई सी लड़की<br>
भीग रही हो, पहले -पहले सावन में<br>
वैसे मैं भी मौसम की हर बारिश में<br>
नई-नई हो जाती हूं, मन ही मन में</p>
<p dir="ltr">वह नई-नई सी लड़की <br>
पहला -पहला प्यार गुनगुनाती है<br>
और मैं वहीं पुराना गीत दोहराती हूं<br>
जैसे नया-नया हो प्यार<br>
पहली-पहली बारिश का</p>
<p dir="ltr">वह ताज़ा-ताज़ा लड़की<br>
निखर जाती हैं बारिश में<br>
और मेरी यादे,सूखे फूल<br>
महक उठते हैं बारिश में</p>
<p dir="ltr">वह नई-नई सी लड़की<br>
फूल,तितली,गौरया<br>
बिजली बन जाती है<br>
और मैं मन बन कर<br>
खिल जाती हूं<br>
पहली बारिश सी रिम-झिम, रिम-झिम<br>
सावन के वहीं पुराने झूलें<br>
वहीं महक पुरानी<br>
हथेलियों पे रचाती हूं</p>
<p dir="ltr">मन ही मन मैं, पहला- पहला<br>
दर्पण हो जाती हूं<br>
जैसे मेरी पहली-पहली बारिश हो</p>
<p dir="ltr">वह लड़की<br>
अब भी मुझमें है<br>
कभी बड़ी नहीं होती<br>
हर सावन में आती है<br>
पहली- पहली बारिश बन कर<br>
महकी-महकी<br>
बहकी-बहकी<br>
बिल्कुल ताज़ा,बिल्कुल वैसी<br>
हर सावन में<br>
भीतर मन में<br>
आ जाती है<br>
अब भी वह<br>
पहली-पहली बारिश बन कर<br>
एक अजब सी ख्वाहिश बन कर<br>
                         </p>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6526075678162922105.post-45578166691036737762019-04-06T22:58:00.001-07:002020-04-25T10:35:08.201-07:00बस तुम नहीं आये<p dir="ltr">देखो ना<br>
हम सब यहीं हैं<br>
जहाँ छोड़ गए थे तुम<br>
वादा करके आने का<br>
पर तुम नहीं आये<br><br></p><p dir="ltr">
उस शाम मेरी पुतलियों में<br>
सूरज डूबते-डूबते ठहर गया था<br>जो अब तक हैं सििंदुरी</p><p dir="ltr">तुम्हारे इन्तज़ार में </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">जिस दरख्त की शाख़ पर <br>
झूल रहे थे तुम मुस्कुराते हुए</p><p dir="ltr">वहाँ बसन्त बसा है अब तक<br>तुम्हारे इंतज़ार में</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">उड़ना तो परिन्दें भी चाहते थे सुदूर<br>
पर नहीं लौौटें, चहकते हैं यहीं <br>
कि कही सूनी न हो जाये </p><p dir="ltr">मन की बगिया</p><p dir="ltr">तुम्हारे इंतज़ार में<br><br></p><p dir="ltr">
एक अक्स तुम्हारा<br>
ठहर गया था झील में</p><p dir="ltr"> पगली! अब तक न पिघली </p><p dir="ltr"> कि खो न जाओ तुम</p><p dir="ltr"> तुम्हारे इंतज़ार में</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">
वो अजान,घंटियों का नाद<br>
पल भर को न रुका फिर<br>
तुम्हारी इबादत में</p><p dir="ltr">और मेरी आदत में</p><p dir="ltr">पर तुम नहीं आये<br>
<u><br></u></p><p dir="ltr"><u>देखो</u><br>
हम सब यहीँ हैं<br>
वो शाम,दरख़्त,परिंदे,झील<br>
तुम्हारे इंतज़ार में<br>
पर तुम कहाँ हो<br>
अब तक नहीं आये<br>
ऋतु गोयल</p>
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