ॠतु बसंत
ॠतु गोयल की मानवीय संवेदनाओं से जुडे ब्लाग में आप का स्वागत है
Monday, December 30, 2019
मुक्तक(प्रेम)
भावों से भरी राधिका सी बावरी हूँ मैं
जो मिल न सकी उम्र भर ऐसी धुरी हूँ मैं
क्या दोष है कान्हा मेरे तुम मुझको बताना
अधरों पे क्यूँ न सज सकी एक बाँसुरी हूँ मैं
मुक्तक(स्वाभिमान)
मुझको न कोई मान न समान चाहिए
इंसा से अलग और न पहचान चाहिए
मेरी है तमन्ना कि मैं ऐसे काम कर चलूं
हर दिल में रह सकूँ यही वरदान चाहिए
Sunday, December 22, 2019
मुक्तक प्रेम
भावों से भरी राधिका सी बावरी हूँ मैं।
जो मिल न सकी उम्र भर ऐसी धुरी हूँ मैं।
क्या दोष है कान्हा मेरे तुम मुझको बताना।
अधरों पे क्यूं न सज सकी एक बांसुरी हूँ मैं।
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