ॠतु बसंत

ॠतु गोयल की मानवीय संवेदनाओं से जुडे ब्लाग में आप का स्वागत है

Sunday, October 15, 2023

मेरे राम

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सिया जी के संग राम,ले रहे हैं सब नाम नाम बिन झूठी सब कलियुगी माया है नाम एक सत नाम पूरन करे जो काम तर गया जिसने भी राम धन पाया है मुख में हो...
Wednesday, July 20, 2022

कोई है जो बोलता है

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             मौन ढेरों प्रश्न-उत्तर अनुत्तरित कतार में खड़े थे अनगिन शब्द व वाक्य अधरों के द्वार पर अड़े थे मन में भावों का झंझावात था तन की ह...
5 comments:
Monday, June 27, 2022

मौन

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ढेरों प्रश्न-उत्तर अनुत्तरित कतार में खड़े थे अनगिन शब्द व वाक्य अधरों के द्वार पर अड़े थे मन में भावों का झंझावात था तन की हरकतों में चक्रवात...
Wednesday, January 5, 2022

कविता(मन छूट रहा है)

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धुंधला जाती है चलते-चलते जब भी मंज़िल। तब अपने नैनों को जुगनू बना लेती हूं। घना अंधेरा छा जाता है जब भी बाहर। तब भीतर-भीतर एक दीया जला लेती ह...

गीत(वो ही है दीवार)

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तारीख बदली,साल बदला फिर से अबकी बार। बेशक हो ये नया कैलेंडर, पर वो ही दीवार। नामों की लंबी सूची पर, उनमें अपने कौन। वक्त की छलनी में छन-छन क...
Saturday, November 13, 2021

गीत (कोई दे न दे)

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खुद ही खुद की खुद्दारी को मान दिया है। हक अपना लेकर खुद को सम्मान दिया है। मैं भारत की नारी, मैं कमजोर नहीं हूँ भारी हूँ। मैं काली,दुर्गा,लक...
3 comments:
Wednesday, April 7, 2021

मुक्तक

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मैं अपने अश्कों की स्याही से ही हालात लिखती हूँ। हरेक पीड़ा ओ बैचेनी, हरेक जज़्बात लिखती हूँ। मैं जो बोलूं वो तुम समझो सदा ये हो नहीं सकता। मै...
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