ॠतु बसंत
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Monday, September 8, 2014
मुक्तक(दिल की पुकार)
मुक्तक
दिल की पुकार दूरियों से कम नहीं होती
आँखें यूं बेवजह कभी भी नम नहीं होती
आते न मेघ की तरह जीवन गगन में तुम
मेरी ह्रदय- धरा पे छमा छम नहीं होतीं
2 comments:
KAVI ASHOK KASHYAP
September 13, 2014 at 8:21 PM
बहुत खूब कहा जी...........
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KAVI ASHOK KASHYAP
September 13, 2014 at 8:22 PM
बहुत खूब कहा जी...........
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बहुत खूब कहा जी...........
ReplyDeleteबहुत खूब कहा जी...........
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