अंश था परमहंस का
जान के विवेक गुरु ने
विवेकानंद बना दिया
प्यासे एक शिष्य को
ब्रह्मानन्द बना दिया
कौशल्य था शब्द को ब्रह्म कर दिया
जगत में उन्नत अपना धर्म कर दिया
जीत लिया मन सबका संबोधन से
पा लिया अमरत्व अपने उद्बोधन से
संतों का संत वो महंत था
सच्चा एक जग में अरिहंत था
साँसों की गागर को वो सागर कर गया
गा-गा के यश माँ को उजागर कर गया
धर्म के मर्म को
ऐसा वो बो गया
नरेंद्र बस नरेंद्र नहीं
अमरेन्द्र हो गया
मेरे जीवन प्रेरणा स्त्रोत स्वामी विवेकानन्दन की जन्म भूमि कोलकाता की मिट्टी की खुशबू अब भी मुझे महकाती है।थोड़ा ही सही उनके जैसा कुछ-कुछ बनाती है।
उनको कोटि-कोटि हिर्दय से नमन।
ऋतु गोयल
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