(दोहे) माँ
तेरी जैसी मैं दिखूं सब
लेते पहचान
हस्ताक्षर
तेरा कहे मुझको सकल जहान
कुछ था
मीठा चूरमा उस पर मीठा हाथ
माँ
बेटी यूं घुल रही घी शक्कर ज्यों साथ
सदा छिपाती ही
रही सबसे अपनी पीर
हर कडवाहट दूर
कर स्वाद पकाती खीर
माँ ने हरदम
ही करी अपनी माँ की बात
अब मैं उसकी
बात को याद करूं दिन रात
दीदी की हर
बात को तुम देती थी काट
मैं छोटी थी
इस लिए बस मेरा था ठाट
माँ जब
से तुम रूठ कर चली गई हो दूर
मैं तन
मन से यूं जलूं जैसे जले कपूर
खुशबू
माँ के जिस्म की ममता के संवाद
मैं
हिरणी सी हो गई माँ कस्तूरी याद