Thursday, January 8, 2015

मुक्तक(पिता)



             मुक्तक

मान और सम्मान भरा था कितना आदर करते थे 
गुस्सा हैं या खुश बाबू जी हम भावों को पढ़ते थे 
अब बाबू जी हमको अपने बच्चों से डर लगता है 
आंख दिखाते हैं ये हमको हम आंखों से डरते थे  



भीतर -भीतर छुप-छुप कर ही रो लेते हैं बाबू जी 
अपने दिल की व्यथा कथा को कब कहते हैं बाबूजी 
वृक्ष सरीखे हैं वे अपना फ़र्ज़ नहीँ भूला करते 
कड़ी धूप में तप  कर भी छाया देते हैं बाबू जी 


तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर घर बनवाते बाबू जी 
अपनी ख्वाहिश टाल-टाल कर धन भर लाते बाबू जी 
जिसे बुढ़ापे की लाठी कह कर इतराया करते थे 
उस लाठी के कारण अब वृद्धाश्रम जाते बाबू जी 

जूही की कली सी याद ....



         जूही की कली सी याद ....


जूही की कली सी याद तुम्हारी
जब भी खुशबू फैलाती
भूल के सब कुछ श्याम तुम्हारी
राधा सुध - बुध बिसराती

प्रेमलता जब से हरियाई
मन मेरा वन -वन डोले
श्याम तुम्हारी धुन वंशी की
हवा में अब सर -सर डोले
दो किनारे अब हम दोनों
याद की यमुना लहराती

बंसी तक सौतन लगती थी
तन-मन तुझपे वारा था
तेरी चितवन से तो सारा
वृंदावन ही हारा था
पल -पल का था साथ हमारा
अब तनहाई दहलाती

रोक सकी मैं ही ना तुमको
सखियाँ देतीं हैं ताना
प्रीत में ऎसी भूल हुई क्या
छोड़ गए जो बतलाना
बावरी सी इक नाम तुम्हारा
कृष्णा-कृष्णा दोहराती

Wednesday, January 7, 2015

प्यार ज़िन्दगी का श्रृंगार करता है



    
प्यार ज़िन्दगी का श्रृंगार करता है



सब उदासियों को तार -तार करता है
प्यार ज़िंदगी का श्रृंगार करता है

चूड़िया भी प्यार में खनक -खनक बोलती
पायल भी प्यार में रुनक -झुनक डोलती
बिंदिया में सजते हैं जगमग सितारे
नैनों में बसते हैं रंगीं नज़ारे
दर्पण भी खुद की मनुहार करता है

प्यार से अंधेर को उजास मिलता है
दिल मे दबी चाह को अहसास  मिलता है
प्यार का हर एक पल नाज़ुक ग़ज़ल है
भावनाओँ की हर एक पाख़ुरी कवल है
भवरे सा प्यार व्यवहार करता है

प्यार ही हवाओं में खुश्बूओ को घोलता
बिन कहे भी दिल की वो अंखियो से बोलता
प्यार यूं जो सर्द की गुनगुनी सी धूप है
जिसकी छुअन से निखर जाता रूप है
प्यार निराकार को साकार करता है