बिटिया
हो जितनी चाहे रेखाएं, हाथ-हथेली पर।
बस एक भाग्य की रेखा ही, तकदीर बदलती है।
हो चाहे जितने बेटे बेशक, मां-बाबा के साथ।
पर इक बिटिया, घर-भर की तस्वीर बदलती है।
बिटिया अपनी माँ की सूनी, आँखें पढ़ती है
अंदाज़ा हालातों का, पल भर में करती है।
हर खामोशी पढ़ने वाली, बिटिया होती है।
सबके दुख में रोने वाली, बिटिया होती है।
वह उत्सव में बन रंगोली,खुद ही सजती है।
मिश्री जैसी बोली, जैसे वीणा बजती है।
बिटिया से ही ,रुनझुन-रुनझुन, आंगन होता है।
बिटिया हो तो, रिमझिम-रिमझिम, सावन होता है।
बिटिया से घर आँगन की सजधज मुस्काती है
बीटिया छू दे तो देहरी पावन हो जाती है
अहसासों से छूकर हर पीड़ा हर लेती है।
हर मुश्किल के दामन में,खुशियां भर देती है।
बिन बिटिया के माओं को, आराम नहीं मिलता।
बेटे ही हो घर में तो, विश्राम नहीं मिलता।
ये बिटिया ही है जो सबके, राज छिपाती है।
अपने सारे गुल्लक, दोनों हाथ लुटाती है।
बिटिया मां की अलमारी का, ऐसा गहना है।
जिसे अमानत बन कर रहना,सब कुछ सहना है।
बिटिया बटुएं और जेबों का एक हिसाब है।
जो छिपा कर रखती अपने सारे,ख्वाब है।
उसकी ख्वाहिश,सबकी खुशियां,कैसा रिश्ता है।
बिटिया सचमुच सब रिश्तों में, एक फरिश्ता है।
बिटिया ने पढ़-लिख के सब,रिकॉर्ड तोड़ दिए।
अंतरिक्ष तक जाके, सबसे रिश्ते जोड़ लिए।
बिटिया घर से संसद तक की रानी बन बैठीं।
बिटिया बेटों से ऊपर महारानी बन बैठीं।
बिटिया धरती- नभ के सारे,काम करती है।
बुद्धि बल से अपना रौशन, नाम करती है।
बिटिया लक्ष्मी,दुर्गा है, और काली है।
फूल नहीं केवल बिटिया,शक्तिशाली है।
बिटिया चंदन है, स्पंदन और अभिनन्दन है।
बिटिया से ही दुनिया है, इसका वंदन है।
उसकी ख्वाहिश,सबकी खुशियां, कैसा रिश्ता है।
बिटिया सचमुच रिश्तों में एक फरिश्ता है।
ऋतु गोयल
(कवयित्री)