Wednesday, April 10, 2013

नदी





नदी

बढ़ती नदी का
कुछ खो गया है
क्या हो गया है
वह सागर से मिलने जा तो रही है
पर कुछ उदास है
नदी को भी प्यास है
कभी तो सागर भी
उससे मिलने आये
गरजते-गरजते
कभी तो गुनगुनाये
हमेशा नदी ही उसके खारेपन में
अपनी प्यास क्यों बुझाती है
क्या सागर को प्रेम की रीत
निभानी नहीं आती है
पर वह क्या करे
यूं बढ़ते रहना ही
उसकी नियती है

शायद यही प्रकृति है

No comments:

Post a Comment