Wednesday, April 10, 2013

धूप

 धूप


गरमाहाट
उतर आई अनगिनत किरणों  में बनकर धूप

धूप बस धूप भर नहीं 
आलिंगन है
सूरज का

सर्दी  की कंपकंपाती देह को देता  
 अपना प्यार 
 अपार ...

जी लेती  हूं रोम -रोम 
पूरी शिद्दत  से  
कण -कण धूप को

क्या पता
कल ये धूप
 रहे न रहे
क्या पता 
मैं कल 
रहूं न रहूं


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