Friday, October 2, 2020

मुक्तक स्वाभिमान

हरगिज़ दया किसी की गंवार नहीं मुझे
खुद संवरी हूँ किसी ने सँवारा नहीं मुझे
जब भी मेरी कश्ती किसी तूफान में डूबी
उसके सिवा किसी ने उबारा नहीं मुझे

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