Saturday, July 30, 2011

एक सूखी डाल....

एक सूखी डाल....



एक घोंसल बना लिया पंछी ने डाल पर
छोड़ कहा जाये उन्हें उनके हाल पर

नन्हें हैं पंख हौसला कहां से लायेंगे
डाल ही बिखर गयी तो उड़ न पायेंगे
बाहों में उनको इसलिये वो झुला रही
माली से मिले ज़ख्म भी हंस कर भुला रही
पीला पड़ा है गात फिर भी कर रही है जंग
एक सूखी डाल चल रही तने के संग

औरो सी वो न फल सकी सावन के मास में
प्यासी ही रही बूंद को स्वाति की आस में
पत्ता-पत्ता,बूटा-बूटा सब बिखर गये
तन की लाली मन का हरापन वो हर गये
पर अंत तक जुटी रही तने के प्यार में
श्रृंगार जिसने था किया उसके आभार में
जब तलक है सांस तब तलक रहेगी तंग
एक सूखी डाल चल रही तने के संग







3 comments:

  1. Daal se sookhker judey rahney ka DUKH

    tootker gir jaane se kahin adhik hai . . . !

    Bhuvan Manav

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  2. behatareen abhivyakti!!
    pahlee baar aayaa, aapke post follow karne layak hain:)

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति
    शानदार सोच
    सादर

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