जूही की कली सी याद ....
जूही की कली सी याद तुम्हारी
जब भी खुशबू फैलाती
भूल के सब कुछ श्याम तुम्हारी
राधा सुध - बुध बिसराती
प्रेमलता जब से हरियाई
मन मेरा वन -वन डोले
श्याम तुम्हारी धुन वंशी की
हवा में अब सर -सर डोले
दो किनारे अब हम दोनों
याद की यमुना लहराती
बंसी तक सौतन लगती थी
तन-मन तुझपे वारा था
तेरी चितवन से तो सारा
वृंदावन ही हारा था
पल -पल का था साथ हमारा
अब तनहाई दहलाती
रोक सकी मैं ही ना तुमको
सखियाँ देतीं हैं ताना
प्रीत में ऎसी भूल हुई क्या
छोड़ गए जो बतलाना
बावरी सी इक नाम तुम्हारा
कृष्णा-कृष्णा दोहराती
सुंदर रचना
ReplyDeleteजय श्रीकृष्ण