ॠतु गोयल की मानवीय संवेदनाओं से जुडे ब्लाग में आप का स्वागत है
है मेहरबान मुझ पे रब कितना वो हुआ है किसी पे कब इतना जानता था कि हंस के सह लूँगी/मेरी हस्ती पे था यकीं उसको दे दिया गम मुझे जहाँ जितना
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