Thursday, July 25, 2019

मुक्तक

है मेहरबान मुझ पे रब कितना
वो हुआ है किसी पे कब इतना
जानता था कि हंस के सह लूँगी/मेरी हस्ती पे था यकीं उसको
दे दिया गम मुझे जहाँ जितना

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