Saturday, November 13, 2021

गीत (कोई दे न दे)

खुद ही खुद की खुद्दारी को मान दिया है।
हक अपना लेकर खुद को सम्मान दिया है।

मैं भारत की नारी, मैं कमजोर नहीं हूँ भारी हूँ।
मैं काली,दुर्गा,लक्ष्मी हूँ, मैं जननी महतारी हूँ।
मैंने ही तो सबको जीवन दान दिया है।१।


मैं चेन्नमा,दुर्गा भाभी, झाँसी की रानी मर्दानी।
मैं सरोजनी नायडू, मैं ही पन्ना धाय सी बलिदानी।
मैंने भी आज़ादी में बलिदान दिया है।२।


मैं अहिल्या,जीजा बाई हूँ, शबरी,मीरा सी हूँ जोगन।
मैं वैदेही, मैं वनवासिन,राधा रानी सा पावन मन।
मेरी खातिर हरि ने गीता ज्ञान दिया है।३।


मैंने ही भाषा सिखलाई,तुम गढ़ते मेरी परिभाषा।
मेरी गोदी में पलते हो,उल्टा पड़ता फिर क्यूँ पासा।
मैंने निर्मिति की, तुमने व्यवधान दिया है।


केश खुले रक्खे अपने जीती जब-जब भी जंग हुई।
दांव लगी जब-जब नारी, बस मानवता ही दंग हुई।
सीता-द्रौपदी सबने ही इम्तेहान दिया है।

Wednesday, April 7, 2021

मुक्तक

मैं अपने अश्कों की स्याही से ही हालात लिखती हूँ।
हरेक पीड़ा ओ बैचेनी, हरेक जज़्बात लिखती हूँ।
मैं जो बोलूं वो तुम समझो सदा ये हो नहीं सकता।
मैं मन के पन्नों पर ही इसलिए हर बात लिखती हूँ।

मुक्तक

वो कहता है कि मेरा है मगर, कुछ है जो खलता है।
मैं हंसती हूँ तो रोता है,मैं रोती हूँ तो हंसता है।
वो बातें भी बड़ी करता है, तालीमें भी अव्वल हैं।
मेरे दिल को न पढ़ पाया,मुझे वो अनपढ़ लगता है।

मुक्तक

अभी तक जो सुना हमने, अधिक ही अनसुना होगा।
यक़ीनन हम सभी के जाने कितने-कितने किस्से हैं।
कि यूं तो दिख रहे हैं हम समूचे सब ही बाहर से।
मगर भीतर ही, भीतर जाने, कितने-कितने हिस्से हैं।