Wednesday, April 7, 2021

मुक्तक

मैं अपने अश्कों की स्याही से ही हालात लिखती हूँ।
हरेक पीड़ा ओ बैचेनी, हरेक जज़्बात लिखती हूँ।
मैं जो बोलूं वो तुम समझो सदा ये हो नहीं सकता।
मैं मन के पन्नों पर ही इसलिए हर बात लिखती हूँ।

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