खुद ही खुद की खुद्दारी को मान दिया है।
हक अपना लेकर खुद को सम्मान दिया है।
मैं भारत की नारी, मैं कमजोर नहीं हूँ भारी हूँ।
मैं काली,दुर्गा,लक्ष्मी हूँ, मैं जननी महतारी हूँ।
मैंने ही तो सबको जीवन दान दिया है।१।
मैं चेन्नमा,दुर्गा भाभी, झाँसी की रानी मर्दानी।
मैं सरोजनी नायडू, मैं ही पन्ना धाय सी बलिदानी।
मैंने भी आज़ादी में बलिदान दिया है।२।
मैं अहिल्या,जीजा बाई हूँ, शबरी,मीरा सी हूँ जोगन।
मैं वैदेही, मैं वनवासिन,राधा रानी सा पावन मन।
मेरी खातिर हरि ने गीता ज्ञान दिया है।३।
मैंने ही भाषा सिखलाई,तुम गढ़ते मेरी परिभाषा।
मेरी गोदी में पलते हो,उल्टा पड़ता फिर क्यूँ पासा।
मैंने निर्मिति की, तुमने व्यवधान दिया है।
केश खुले रक्खे अपने जीती जब-जब भी जंग हुई।
दांव लगी जब-जब नारी, बस मानवता ही दंग हुई।
सीता-द्रौपदी सबने ही इम्तेहान दिया है।
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
नारी सम्मान में सुंदर रचना।
ReplyDeleteअभिनव सृजन।