ॠतु बसंत
ॠतु गोयल की मानवीय संवेदनाओं से जुडे ब्लाग में आप का स्वागत है
Wednesday, April 7, 2021
मुक्तक
अभी तक जो सुना हमने, अधिक ही अनसुना होगा।
यक़ीनन हम सभी के जाने कितने-कितने किस्से हैं।
कि यूं तो दिख रहे हैं हम समूचे सब ही बाहर से।
मगर भीतर ही, भीतर जाने, कितने-कितने हिस्से हैं।
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