अपनी पलकों पे आब रखती हूं
मैं भी आंखों में ख्वाब रखती हूं
बिन तेरे कैसा कट रहा है सफ़र
हमसफ़र ये हिसाब रखती हूं
सबकी आंखों में एक समन्दर है
कितना धुंधला हर एक मंज़र है
आदमी हंस रहा ऊपर-ऊपर
सच तो कुछ और है जो अंदर है
गर बदी है तो संग शराफ़त है
प्यार है इसलिए शिकायत है
है मुनासिब हंसी वहीं केवल
आंसुओं की जहां हिफ़ाज़त है
लोग ऐसे भी मिलते जाते हैं
खास दिल में जगह बनाते हैं
नाम होता नहीं है रिश्तों का
उम्र भर साथ जो निभाते हैं
मैं भी आंखों में ख्वाब रखती हूं
बिन तेरे कैसा कट रहा है सफ़र
हमसफ़र ये हिसाब रखती हूं
सबकी आंखों में एक समन्दर है
कितना धुंधला हर एक मंज़र है
आदमी हंस रहा ऊपर-ऊपर
सच तो कुछ और है जो अंदर है
गर बदी है तो संग शराफ़त है
प्यार है इसलिए शिकायत है
है मुनासिब हंसी वहीं केवल
आंसुओं की जहां हिफ़ाज़त है
लोग ऐसे भी मिलते जाते हैं
खास दिल में जगह बनाते हैं
नाम होता नहीं है रिश्तों का
उम्र भर साथ जो निभाते हैं
आपकी रचना की जितनी तारीफ करूँ कम है... मन के अंतर्द्वंद को शब्द दिए हैं आपने
ReplyDeleteबहुत खूब वाह
ReplyDeleteअपनी पलकों पे आब रखती हूं
ReplyDeleteमैं भी आंखों में ख्वाब रखती हूं ...........
क्या बात है. बेहतरीन है ये ...
सुन्दर कृति
ReplyDelete---
Tech Prevue: तकनीक दृष्टा
बेहतरीन मुक्तक..आनन्द आया.
ReplyDelete