चिड़िया
एक थी चिड़िया
एक थी मैं
मैं थी चिड़िया
या चिड़िया थी मैं
यह समझना मुश्किल था
क्योंकि इतनी समानताएं थी हम दोनों में
कि लोग अक्सर मुझे चिड़िया कहते थे
और चिड़िया को मुझ जैसा
हमने कितनी ही शाखों पर झूलें डाले थे
झूलों पर झूलाए थे सपने
सपनों में छोटी छोटी चाहत
और चाहत में क्या
बस गलियां,सखियां और अपने
पर जैसे- जैसे हमारे कद
हमारे झोटों से ऊंचे होने लगे
न जाने किसकी नज़र लगी
हमारे पंख हम से छीन लिये गये
और एक रस्म निभायी गई
जिसमें गलियां,सखियां, अपने
सब तो दूर हुएं ही
मेरी चिड़ियां भी मुझसे बिछुड़ गई
अब मुझे कोई चिड़िया नहीं कहता
शायद चिड़िया को भी मुझ जैसा
अब जब भी जाती हूं उन गलियों में
वो चिड़िया दिखायी नहीं देती
वह भी रुखसत हो गयी होगी कहीं
क्योंकि
मायके में बिन बिटिया के चिड़िया के क्या मायने
और ससुराल वाले क्या जाने
यह ससुरी चिड़िया
किस चिड़िया का नाम है
waah................
ReplyDeletemarm ke marm tak sparsh karti
atyant komal kavita........
मुझे और मेरी चिड़िया को
कैद रहना नहीं भाता
दुनियादारी भी निभाना नहीं आता
पर हमें सब सिखाया गया
लड़की होने का मतलब बताया गया
हम तो और उड़ना चाहती थीं
साबित करना चाहती थीं
कि हमारे नाज़ुक से परों की उड़ान में इतने हौसले हैं
कि हम ज़मीं पर टिकी रह कर भी आंसमां छू सकती हैं
पर हमारे पंख हमसे छिन लिये गये
bahut kuchh
sab kuchh kah diya aapne.........
abhinandan !
बहुत भावपूर्ण रचना. पसंद आई.
ReplyDeleteरक्षा बंधन के पावन पर्व की शुभकामनाऐं.
भावपूर्ण रचना --
ReplyDeleteबेहतरीन --
बहुत सुन्दर व्यथा कथा
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है बधाई।
ReplyDeletebahut achchhee kavitaaayen lagee.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना.....!
ReplyDeleteManavikaran achha hai.
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