सावन कहना रे
सावन उनसे जाके कहना रे
इस मौसम में भी
उनके बिन
कैसा रहना रे
मन तो मन है
देख के बादल
चहक उठा
मचल गया
पर बादल यूं बरसा
मुझको छोड के प्यासी
निकल गया
कितनी बारिश लौट गयी यूं
अब ना दहना रे
बाहों के झूलों में झूलूं,
झोंटें दें उनकी बतियां
गुलमोहर सी खिली शाम हो
रजनीगन्धा सी रतियां
साथ के चन्दन की खूशबू में
संग -संग बहना रे
दोनों हाथों में हैं कंगन
लेकिन उनमें खनक नहीं
बिंदिंया हैं पर चमक नहीं है
पायल हैं पर छमक नहीं
हर गहना,
गहना हो जाये
खुद ही पहना रे
bahut pyara
ReplyDeletebahut sundar
bahut saumya geet................
badhaai !
बहुत उम्दा.
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