Sunday, July 19, 2009

तेरा प्यार नौका सा हिचकोले खाता है



        मेरा प्यार नदिया सा .....

तेरा प्यार नौका सा हिचकोले खाता है
मेरा प्यार नदिया सा बढ़ता ही जाता है

थोड़ी सी ऊंची लहरों से जो है घबराती
वो कश्ती अपने साहिल तक पहुंच नहीं पाती
पर्वत और चट्टानों से जो राह बनाती है
वो नदिया खारे सागर से मिलने जाती है
हां प्यार में तो पागल मन को सब भाता है
मेरा प्यार नदिया सा

रोम रोम सागर में नदिया यूं घुल जाती है
नदी न रह कर बूंद- बूंद सागर कहलाती है
सागर बन -बन कर वह जब -जब तट तक आती है
रेत भी नम हो -हो कर उसकी यादें गाती है
क्यों चैन उसे सागर में खोकर आता है
मेरा प्यार नदिया सा

नदिया से यूं प्यार निभाता है सागर का जल
खुश हो कर वो तपता जाता बन जाता बादल
बादल बन सारी धरती पर सदा बरसता है
कण -कण भीग प्यार में सबका जीवन हंसता है
हां हरियाली का भी पानी से नाता है
मेरा प्यार नदिया सा

2 comments:

  1. तेरा प्यार नौका सा हिचकोले खाता है
    मेरा प्यार नदिया सा बढ़ता ही जाता है

    अच्छी लगी आपकी यह रचना

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  2. थोड़ी सी ऊंची लहरों से जो है घबराती
    वो कश्ती अपने साहिल तक पहुंच नहीं पाती
    सच कहा है. लहरो से घबराने वाले साहिल तक नही पहुंच सकते

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