Tuesday, July 28, 2009

तुम और तुम्हारी आंखें



आंखें 

तुम और तुम्हारी आंखें
कितना कुछ कहती हैं खामोश रह कर
इसी खामोशी को पढ़ने समझने में जुटी हूं मैं
तब से अब तक
जितना भी समझा हैं अब तलक इन्हें
यहीं पाया है कि तुम्हारी आंखों में ही समाया है
दरअसल तुम्हारा सारा व्यक्तित्व

इनमें देखा है मैंने
असंख्य रंग बिरंगी मछलियों को तैरते
अनगिन परिंदों को उड़ान भरते
कभी रेगिस्तान सा रुखापन, पर्वतों सी दृढ़ता
मजनूंओं सा बांवरापन,भंवरों सी चंचलता
इसीलिये तुम और तुम्हारी आंखें
पर्याय हो
एक दूसरे के

बहुत सुन्दर हैं ये क्योंकि इनमें
तुम्हारे अज़ीज सपनों की
 तस्वीर सजी दिखाई देती हैं मुझे
और हां अब इन तस्वीरों में
मैं भी दिखने लगी हूं
जैसे जनमों से सपनों की तरह
मैं भी तुम्हारी सगी हूं

तुम्हारी आंखों में सैलाब है, धुआं है
पर आंखों में हमेशा तैरती
 लहरें डूबने नहीं देती मुझे
ले आती है सुरक्षित साहिल तक


हां तुम्हारी आखों में
मेरा मन खिलता है
और किसी स्त्री को
साहिल
वाकई बड़ी मुश्किल से मिलता है

7 comments:

  1. आप बहुत अच्छा लिखती हैं...एहसास को ..प्यार को बखूबी पिरोया है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. आँखों की बात करते करते आपने बहुत गहरी बातें कह दीं है ऋतु जी। भावपूर्ण रचना। आँखों के बारे में मेरी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है-

    जब होती चार आँखें, आँखों से होती बातें।
    आँखों से प्यार होता, आखों में कटती रातें।
    आखों को चुभती आँखें, जो आँखें होती सूनी।
    ममता से पूर्ण आँखें, आँखें भी होती खूनी।
    एक आँख बिछाते हैं, एक आँख से छलते हैं।
    एक दीप सा जलते हैं, एक द्वेष में जलते हैं।।

    आसानी से टिप्पणी करने के लिए कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हँटाने का उपाय करें।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. वाह...एक बार नहीं बार बार पढ़ा आपकी रचना को शब्द और भाव इतनी खूबसूरती से पिरोये हैं आपने की बरबस मुंह से वाह वाह निकल रही है...आपकी लेखनी को सलाम...
    नीरज

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  4. aankhe ek choti si cheez jisase ham sara brhmaand dekh sakate hai..kitani anokhi baat hai...aur aapne un aankhon par adbhut rachana kar dali..

    bahut sundar abhivyakti..kya kahun mai..padh kar bahut hi achcha laga..aur aapko bahut dhanywaad..is rachana ke liye..

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  5. ek behatrin rachana..........laazawaab

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  6. इन आंखों को और क्या दूं
    इनमें और सपनें, और रौशनी
    और ज़िन्दगी भरती हूं
    ====
    सपने भरती लाजवाब रचना

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  7. aankhen jab bolti hain toh bahut bolti hain

    aankhen aur aankhon par kavita.............

    ati sundar !

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