शब्द
कागज़ के टूकड़ों में हो गये व्यर्थ
जो शब्द गढ़ न पाये अर्थ
अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद
वे हारे हुए,मुज़रिम से खड़े हैं
और मैं उन सब को
बाइज़्ज़त रिहा करती हूं
उस अपराध के लिये
जो हो जाता है ,किया नहीं जाता
उन्हें गेंद की तरह उछाल देती हूं
खेलने के लिये
उड़ा देती हूं हवा में,बतियाने के लिये
और उन्हीं शब्दों से निकले
शब्दों संग बैठ जाती हूं
फ़िर से अर्थ गढ़ने के लिये
Very nice thought....
ReplyDeleteI am touched
kya kahane rituji, aapaki rachnaye padhane ko mili achha laga. shubhakamanaye.
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