Saturday, August 21, 2010

शब्द



शब्द


कागज़ के टूकड़ों में हो गये व्यर्थ
जो शब्द गढ़ न पाये अर्थ
अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद
वे हारे हुए,मुज़रिम से खड़े हैं
और मैं उन सब को
बाइज़्ज़त रिहा करती हूं
उस अपराध के लिये
जो हो जाता है ,किया नहीं जाता
उन्हें गेंद की तरह उछाल देती हूं
खेलने के लिये
उड़ा देती हूं हवा में,बतियाने के लिये
और उन्हीं शब्दों से निकले
शब्दों संग बैठ जाती हूं
फ़िर से अर्थ गढ़ने के लिये

2 comments:

  1. kya kahane rituji, aapaki rachnaye padhane ko mili achha laga. shubhakamanaye.

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