धूप
गरमाहाट
उतर आई अनगिनत किरणों में बनकर धूप
धूप बस धूप भर नहीं
आलिंगन है
सूरज का
सर्दी की कंपकंपाती देह को देता
अपना प्यार
अपार ...
जी लेती हूं रोम -रोम
पूरी शिद्दत से
कण -कण धूप को
क्या पता
कल ये धूप
रहे न रहे
क्या पता
मैं कल
रहूं न रहूं
ॠतु गोयल की मानवीय संवेदनाओं से जुडे ब्लाग में आप का स्वागत है
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