Sunday, September 7, 2014

धूप



      धूप


गरमाहाट
उतर आई अनगिनत किरणों  में बनकर धूप

धूप बस धूप भर नहीं
आलिंगन है
सूरज का

सर्दी  की कंपकंपाती देह को देता
 अपना प्यार
 अपार ...

जी लेती  हूं रोम -रोम
पूरी शिद्दत  से
कण -कण धूप को

क्या पता
कल ये धूप
 रहे न रहे
क्या पता
मैं कल
रहूं न रहूं

No comments:

Post a Comment