Tuesday, June 2, 2009

बेटियाँ









बेटियाँ गुलज़ार होती हैं
बेटियाँ बस प्यार होती हैं
बेटियाँ घर छोड़ जातीं जब
खुशियॉ सब उस पार होतीं हैं
बेटियों से हर घड़ी पावन
बेटियों से ज़िन्दगी सावन

बेटियों के सुर ही तन-मन में
प्राण बन के बसे होते हैं
बेटियाँ घर-घर की वीणाएँ
तार जिनके कसे होते हैं
गूँजती फिर भी मधुरता बन
बेटियाँ संगीत मनभावन
बेटियों से ज़िन्दगी सावन

धूप से हरदम बचाएँ जो
बेटियाँ वो छाँव होतीं हैं
झूमते दिन रात पेड़ों के
नृत्य करते पाँव होतीं हैं
बेटियों से महकता उपवन
बेटियों से घर हैं वृंदावन
बेटियों से ज़िन्दगी सावन


बेटियाँ जब जन्म लेतीं हैं
जन्म दे क्यूं माएं रोतीं हैं
बेटियों को कोख में मारे
बेटियों से दुनिया होती हैं
रुक गई जो इनकी ही धड़कन
रच सकोगे क्या धरा नूतन
बेटियों से ज़िन्दगी सावन

देह धर कर आ गया है जो
बेटी नयनों का वहीं सपना
सपना वो जो सबसे अपना है
फिर भी वो होता नहीं अपना
छोड़ जाती खुशबू तन-मन की
बेटियाँ हैं या हैं ये चन्दन
बेटियों से ज़िन्दगी सावन

बेटियाँ मधुमास होतीं हैं
दूर हो के पास होतीं हैं
बेटे घर के दीप हैं माना
बेटियाँ अरदास होतीं हैं
जो सदा करतीं जहां रोशन
बेटियाँ हैं भोर का वंदन
बेटियों से ज़िन्दगी सावन

1 comment:

  1. एक अच्छी कविता के लिये बधाई

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