Wednesday, June 3, 2009

मुक्तक(चांदनी देखिए)

मन के मरुथल में भी अब के बरसात हो
आग हैं हर तरफ़ प्यार की बात हो
भर सके रोशनी इस जहां में सदा
इस तरह की कोई चांदनी रात हो

मौत सच हैं मगर ज़िंदगी देखिये
आग मत देखिये रोशनी देखिये
चांद को देखना हो अगर आपको
दाग मत देखिये चांदनी देखिये

1 comment:

  1. daag mat dekhiye,chaandni dekhiye....
    atyant umda muktak....
    abhinandan aapka !

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