औरत
सारे घर को खिला देने के बाद
अपने लिये रोटियां
कभी गोल नहीं बना पाती वह
ऐसा नहीं कि उसने कभी कोशिश नहीं की
पर रोटियां बेलते हुए
उन्हें आकार देते हुए
उसे बार-बार ये ध्यान आ जाता है
कि उसके कितने ही सपनों ने
आकार खो दिये हैं
जिन्हें साकार करने की
इच्छा तक
व्यक्त नहीं कर पाई वह
तो क्या फर्क पडता है
घर भर की भांति
रोटियां उसकी
गोल हो या आकारहीन
पेट तो भरता ही है
सही कहा है अपने लिये जहा तक मेरी निगाह जाती वह सपने भी नही देख पाती है. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबधाई
एक निवेदन करना चाहता हू – कृपया कमेंट से उचित समझे तो शब्द पुष्टिकरण हटा ले.
ReplyDeleteकविता में नैराश्य भाव है।
ReplyDeleteखुशियों की भरमार जगत में दृष्टिकोण का फर्क चाहिए।
जीवन-मूल्य स्थापित करने सार्थकता का तर्क चाहिए।।
श्री एम० वर्मा जी की बातों से भी मैं सहमत हूँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
भावपूर्ण!!
ReplyDeletebahut hi achhi kavita...........
ReplyDeletemaarmik vishay par komal shabdaavli ka shringaar !
waah !