महज़ एक किताब
तुम
जब- जब नहीं थे करीब
मेरी मनकही के लिए
तब- तब जन्म लेती रही कविता
आज
जब इस किताब को लोग
मेरी कविताओं का संकलन कह रहे हैं
कहती हूं इसे मैं
तुमसे दूर
एक गुलदस्ता
तुम्हारी यादों का
इसकी एक- एक कविता
तुम्हारे बिन गुजारे
पल - पल की दास्तां है
इसे
फ़ुरसत मिले तो
तुम भी पढ़ लेना
समझ कर
महज़ एक किताब
विरह के पल की याद को कहतीं आप किताब।
ReplyDeleteगुलदस्ता है याद की अच्छा दिया खिताब।।
Note : Pls arrange to remove the word verification.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
virah ki kavita
ReplyDeleteतब-तब कविता जन्म लेती रही,
ReplyDeleteवाह क्या पंक्ति इसके तो हम कायल हो गये
वाह!! अति सुन्दर!
ReplyDeleteविरह अग्नि में लिखा गया हर शब्द एक किताब की ही तरह होता है...यादों का एक आइना होता है..
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