Saturday, April 6, 2019

आतंकवाद

मेरी एक कविता  पुलवामा में हुए शहीदों के नाम.....

तुम पिशाचों के वंशज,तुम असुरों के अनुयायी हो।
तुम मानव और मानवता के, बीच बड़ी सी खाई हो।
तुम जाति के हो विषधर, धर्म तुम्हारा डसना है।
जहाँ बिलखती करुणा तुमको, तो वहीं पर बसना है।
हम धरती के वासी जाने, तुम कहाँ के वासी हो।
हो मौत के सौदागर तुम, निश्चित नरक प्रवासी हो।
तुम गिद्दों से भी गए गुजरे, जो ज़िंदा इंसां खाते हो।
तुमसे बेहतर श्वान तुम तो, अपनों को डस जाते हो।

खूं से लथपथ कर दी तुमने, स्वर्ग समान फ़िज़ाएँ थी
और विषैली कर दी तुमने, खुशबूदार हवाएं थी
तुमको जो भी सिखा रही हैं, नफरत की भाषाएं ये।
जाने कोख ये कैसी होंगी, कैसी हैं माताएं ये।
माँ, बहनों और सुहागिनों का, दर्द समझ न पाती हैं।
दूध उतरता है इनके या, ज़हर उगलती छाती हैं।
हो बेशक ये ताड़काएँ, मारीच पैदा करती हैं।
पर अंततः भूल गई क्या, हाथों राम के मरती हैं।

ये तुतलाती बोलियों को, जंग-जिहाद पढ़ाते हैं।
कैसे जनक हैं जो जन्में को, बारूद में सुलगाते हैं।
इनके निष्ठुर कंधों पर ये,  बच्चे सैर नहीं करते।
हथियार लदे रहते हैं इनपे, इनकी ख़ैर नहीं करते।
ये क्या जाने जब अर्थी को, बूढ़े कन्धें ढोते हैं।
तब मेले के हरेक खिलौने, फूट-फूट कर रोते हैं।
दशरथ तलक नहीं बचे थे, श्रवण कुमार के श्रापों से।
तुमको श्राप झेलने होंगे, शहीदों के माँ-बापों से।

इतिहास गवाह है हमने पहले, कब तानी प्रत्यंचाएँ।
पर दुःशासन हो गर कोई, हम लहू भी पी जाएं।
हम वनवासी हमने तो बस, सबको गले लगाया है।
पर सागर को लांघ हमीं ने , रावण मार गिराया है।
महिषासुर हो गए हो अब तुम, हम पर भी रणचंडी है।
युद्ध करो बन कर योद्धा फिर, देखो कौन शिखंडी है।
हम रक्तबीज का सारे भू से, नामोनिशां मिटा देंगे।
सीमा पार करी है तुमने, तुमको धूल चटा देंगे।
जय हिंद
        ऋतु गोयल

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