Saturday, April 6, 2019

मील का पत्थर

मील का पत्थर

तुम
मुझे राह न बताओ
मुझे पगडंडियों पर चलने का अभ्यास है पुराना।

मत बताओ
सरल,कंटकरहित डगर
मुझे फूल अक्सर चुभा करते हैं।

अरे तेज़ रौशनी है वहाँ
अब आँखें चौंधिया जाती हैं।
मुझे मद्धम,डूबता सूरज बहुत है
दिखने को साफ-साफ सब कुछ।

जानते हो क्यों
क्योंकि
मुझे यकीं है
खुद पर
तुमसे अधिक।
क्योंकि खुद
खो भी गई तो क्या
वो ही मेरी मंज़िल होगी।
और
तुमने पहुँचा भी दिया तो क्या
मंज़िल तो वो होती है ना
जो राहगीर खुद तलाश करे।

मुझे मेरी थकान
उसके
अपनेपन
मीठेपन
को महसूस करना है
उस जगह......
जो मैंने खुद मीलों चल कर
तलाश की है......
ताकि मैं भी बन सकूं
एक मील का पत्थर...
           
              ऋतु गोयल

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