Wednesday, June 3, 2009

शहरवास

इस शहर के तमाम
मोटर इमारत रेस्तरां बाज़ार प्रसाधनों से कह दो कि
एक बार जाने दे मुझे
झरनें,पहाड, नदियां, सागर, अम्बर के करीब

कह दो मेरे प्रिय से कि एक बार ले चले फिर वहां
जहां मैं और वो हो अकेले
मुझे नहीं देखने दुनिया के मेले

मत भरो मुझ में जबरन सांसें
भरना हो तो भरो
वो हंसी वो खुशी वो प्यार
मेरे सपनों का संसार
जहां शकुन्तला और दुष्यंत
एक दूसरे में संगीत भरते हैं
रोज़ नये गीत रचते हैं
जहां प्रेम का इतिहास रचा जाता है
सृष्टि का शिल्प गढ़ा जाता है
जहां कल्पनाओं की सीमायें नहीं होती
दुनिया भर की बाधायें नहीं होती
इंसान,इंसान से  प्यार करता है
एक दूसरे का आभार करता है
मनगढंत रीत नहीं है
हार और जीत नहीं है
जहां होता है
प्यार प्यार और प्यार
ऐसी दुनिया में पहुंचा दो मुझे

मुझे मत दो शहरवास
जहां सब कुछ हैं
पर दिलों में एहसास नहीं है
प्रेम की प्यास नहीं है
कहो
क्या ये शहर मुझको वनवास नहीं है

2 comments:

  1. shaharvas par umda aur arthpoorn kavita !
    waah waah !

    ReplyDelete
  2. मुझे मत दो शहरवास
    जहां सब कुछ हैं पर दिलों में एहसास नहीं है
    प्रेम की प्यास नहीं है
    कहो
    क्या ये शहर मुझको वनवास नहीं है

    bahut hi sundar ......jo pida hai in panktiyon se purntah spast ho jaati hai .......bahut sahi hai.....sab kuchh hai par pyaar nahi hai

    ReplyDelete