Wednesday, June 3, 2009

महज़ एक किताब



महज़ एक किताब

तुम
जब- जब नहीं थे करीब
मेरी मनकही  के लिए
तब- तब  जन्म लेती रही कविता

आज
जब इस किताब को लोग
मेरी कविताओं का संकलन कह रहे हैं
कहती हूं इसे मैं
तुमसे दूर
एक गुलदस्ता
तुम्हारी यादों का


इसकी  एक- एक कविता
तुम्हारे बिन गुजारे
पल - पल की दास्तां है

इसे
फ़ुरसत मिले तो
 तुम भी पढ़ लेना
समझ कर
महज़ एक किताब


5 comments:

  1. विरह के पल की याद को कहतीं आप किताब।
    गुलदस्ता है याद की अच्छा दिया खिताब।।

    Note : Pls arrange to remove the word verification.

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  2. तब-तब कविता जन्म लेती रही,

    वाह क्या पंक्ति इसके तो हम कायल हो गये

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  3. वाह!! अति सुन्दर!

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  4. विरह अग्नि में लिखा गया हर शब्द एक किताब की ही तरह होता है...यादों का एक आइना होता है..

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