दमन दामिनी
चीर कर उसका बदन
महज़ समझ के
एक खिलौना
जता दिया तुमने
किस हद तक हो सकता है
आदमी घिनौना
तुम्हारी दरिंदगी के औजारों
और वहसी सोच ने
साबूत निगल लिया
उड़ान भरती
उस लड़की को
परवान चढ़ती
उस लड़की को
पर कभी आदमी होने की कवायद में
पूछना जरूर अपनी माँ से कि
जब भरोसे से भरी कोई लड़की
लड़कों से सारी जंग जितने के बाद
हार बैठती हो अपनी अस्मत
सरे आम चौराहे पर
जब जीने के अनंत सपने संजोये
किसी लड़की का दमन हो जाता हो
बढ़ती राहों पर
तब कैसा लगता है!
जब शर्मो-हया में लिपटी
ढकी-ढकी सी कोई लड़की
किसी अभागे दिन या रात
हाथ आ जाती हो दरिंदों के
या कोई बहन या बेटी
लूट जाती है हाथों, दहशतगर्दों के
तो उस पल
क्या चटख जाता है धरती पर
कि दुनिया की तमाम औरतें
महसूसती हैं भीतर...
दर्द....
भय....
और अपने
औरत होने का श्राप......
पूछना जरुर एक बार
अपनी माँ से...
No comments:
Post a Comment