Saturday, April 6, 2019

मुक्तक(औरतों पर)

एक दिन तू मन की सच्चाई समझेगा।
तू भी  बातों की गहराई समझेगा।
जिस दिन तू भी अपनों में तन्हा होगा।
क्या होती है ये तन्हाई समझेगा।

ज़ख्मों में जीती-मरती हूँ आदत है।
मेरे दिल में सबके लिए मोहब्बत है।
सितम वक्त के और साजिशे दुनिया की।
हँसते-हँसते सब सह लूँगी हिम्मत है।

मैं एक नदिया सी बहती हूँ क्या बोलूं।
तुझसे मिल कर खुश रहती हूँ क्या बोलूं।
तू सागर है तुझसे मिलने की खातिर।
दुनिया में क्या-क्या सहती हूँ क्या बोलूं।

                    
                                 

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