देखो ना
हम सब यहीं हैं
जहाँ छोड़ गए थे तुम
वादा करके आने का
पर तुम नहीं आये
उस शाम मेरी पुतलियों में
सूरज डूबते-डूबते ठहर गया था
जो अब तक हैं सििंदुरी
तुम्हारे इन्तज़ार में
जिस दरख्त की शाख़ पर
झूल रहे थे तुम मुस्कुराते हुए
वहाँ बसन्त बसा है अब तक
तुम्हारे इंतज़ार में
उड़ना तो परिन्दें भी चाहते थे सुदूर
पर नहीं लौौटें, चहकते हैं यहीं
कि कही सूनी न हो जाये
मन की बगिया
तुम्हारे इंतज़ार में
एक अक्स तुम्हारा
ठहर गया था झील में
पगली! अब तक न पिघली
कि खो न जाओ तुम
तुम्हारे इंतज़ार में
वो अजान,घंटियों का नाद
पल भर को न रुका फिर
तुम्हारी इबादत में
और मेरी आदत में
पर तुम नहीं आये
देखो
हम सब यहीँ हैं
वो शाम,दरख़्त,परिंदे,झील
तुम्हारे इंतज़ार में
पर तुम कहाँ हो
अब तक नहीं आये
ऋतु गोयल
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