Saturday, April 6, 2019

चादरों पर कसीदें

लड़की के सपने

रेशमी धागों से
काढ़े थे कसीदें
महीनों लगा कर...
रंग-बिरंगे फूल-पत्तें
यूँ  मुस्कुरा उठे थे
ज्यों चादर नहीं
बगीचा हो महकता हुआ

कुछ-कुछ पंछी से भी
उड़ा दिए थे उसने
निसंदेह
भौंरें भी थे फूलों पर

दरअसल
माँ के संदूक में
ऐसे कई बगीचें
गढ़ दिए थे
उस बावरी लड़की ने....

अब जबकि
सब हो गए फुर्र
पंछी - भौंरें - रंग
बस
चादर भर है संग

फिर भी उसे
धोना,सूखाना, बिछाना
अब भी करती है
यह बावरी औरत......

                          ऋतु

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