Monday, December 15, 2014

मुर्दाघर


 मुर्दाघर



अँधेरी गुफा
गुफा में मुर्दाघर
जहां एक भी साबूत लाश नहीं
अलग -अलग चोट
अलग -अलग दर्द
चीख ही चीख
ऐसे शमशान में
शैतान सर धुनता
अंगों को समेट
अर्थियाँ सजा रहा है
शैतान हो के भी
आंसू बहा रहा है
एक के बाद एक
आवारा अंग चले आ रहे हैं
मरो मारो यहीं चिल्ला रहे हैं
जो सबूत लाशें हैं भी
भयावह हो रही हैं
इंसानियत खो के
कहर ढो रही हैं
सकते में है शैतान
ये इंसान है या हैवान
ह्त्या-ह्त्या -ह्त्या
और आत्महत्या
सांसो का सिलसिला ख़तम हो रहा है


खुद मरो या मारो सितम हो रहा है
सभ्य दुनिया
असभ्य हो गई है
शैतान तक को
क्षम्य हो गई है
इंसानियत परेशान है
हैवानियत हैरान
  

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