Saturday, December 13, 2014

बारिश नहीं कुछ और


बारिश नहीं कुछ और...



बारिश के पानी से धरती का
कण-कण भीग रहा है 
काले घने बादलों से
सांझ को ही हो गई रात
व्यस्त सड़के सुस्ता रही हैं
ऐसे में मैं लिखती हूँ....
गरमागरम पकौड़ो की
सुगंध है बारिश
तो कहीं
ठिठुरन है बारिश
कांच की खिड़कियों से
बारिश को निहारना
कागज़ की नाव बनाना
मन का हौले -हौले गुनगुनाना
बारिश है
पर
झोपड़ो की छतों से
पैबंदो का फट जाना
फुटपाथ पर जीवन का
 डर कर सहम जाना
बारिश नहीं

कुछ और है..

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