कविता
कविता तू तड़प रही है
अपने जनम के लिए
किन्तु बहुत सी तैयारियाँ शेष हैं
प्रसव के पहले
तू इंतज़ार कर कुछ और
मेरे भावों को धमनियों में
उमड़ने-घुमड़ने दे
मेरे रक्त मज्जा से खुद को
और सनने दे
जनम देना इतना सहज नहीं
और शब्दों का जनम नौ महीने क्या
नौ वर्ष भी लेंगे
जितना तड़पेगी भीतर तू
उतने युगों तक जियेगी
कविता
मुझे भावों का दर्द अभी
और सहने दे
इस प्रसव पीड़ा को
और रहने दे
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